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मित्रता

  1. मित्रता एक आशा है, निराश मन की ।
    मित्रता किलकारियां हैं सूनेपन की ।।
    मित्रता में कुछ भी अनपेक्षित नहीं है ।
    मित्रता माधुर्य है चौदह भुवन की ।।
    शाश्वत संबंध केवल मित्रता है,
    आत्मिक आनंद केवल मित्रता है।
    जबकि; हर रिश्ता यहाँ पर स्वार्थ का है,
    किन्तु, बस निःस्वार्थ केवल मित्रता है ।।
    कोई शिकवा ना गिला है मित्रता में ,
    अनवरत सहयोग, केवल मित्रता है।।
    और सब रिश्ते स्वयं बनकर मिले हैं ,
    मधुरतम संयोग बस, ये मित्रता है ।।

    आशुतोष त्रिपाठी !!

     

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