- मित्रता एक आशा है, निराश मन की ।
मित्रता किलकारियां हैं सूनेपन की ।।
मित्रता में कुछ भी अनपेक्षित नहीं है ।
मित्रता माधुर्य है चौदह भुवन की ।।
शाश्वत संबंध केवल मित्रता है,
आत्मिक आनंद केवल मित्रता है।
जबकि; हर रिश्ता यहाँ पर स्वार्थ का है,
किन्तु, बस निःस्वार्थ केवल मित्रता है ।।
कोई शिकवा ना गिला है मित्रता में ,
अनवरत सहयोग, केवल मित्रता है।।
और सब रिश्ते स्वयं बनकर मिले हैं ,
मधुरतम संयोग बस, ये मित्रता है ।।आशुतोष त्रिपाठी !!
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