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Ghazal

वादा

काम मुश्किल था बड़ा फिर भी निभाया हमने,
कई बिखरे हुए रिश्तों को सजाया हमने ।।

धूल थी जम चुकी ज़ज़्बात मरने वाले थे,
एक कोने में पड़े उनको उठाया हमने ।।

हर कोई आया, मिला और ज़ख्म देके गया ,
जिसको हमदर्द समझ पास बिठाया हमने ।।

बारहा बिखरे भी हम ताश के घर की मानिंद ,
फिर भी रिश्तों को सलीके से सजाया हमने ।।

अश्क़ पीते गए , ज़ख्मों को खुला छोड़ दिया ,
मुसकराहट में भी सौ दर्द छुपाया हमने ।।

हर एक वादा चुभा सौ बार जिगर में “राही”
मिट गए खुद मगर वादों को निभाया हमने ।।

आशुतोष त्रिपाठी !!

 

 

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