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श्रीकृष्ण

वो नटवर- नागर हो चाहे, उसे नाम मिला हो गोपाला।
वो प्यारा सबका था क्योंकि, उसने भी पिया विष का प्याला :-
सीमित संसाधन में पलकर, जो विश्व गुरु बन बैठा हो ।
कितना अदम्य साहस होगा, जो दुनिया से लड़ बैठा हो –
आपदा से लड़ने ख़ातिर जो, हर क्षण सहर्ष तैयार रहा।
उस मोहन को सौ बार नमन, जिस पर मोहित सँसार रहा ।।
पीड़ितों, शोषितों, की ख़ातिर, जो एक मात्र आलम्ब रहा।
जब चरम पे अपने था अधर्म, वह एक धर्म-स्तम्भ रहा ।।
“जैसे को तैसा” – ये नारा, था सर्वप्रथम कान्हा ने दिया ।
सौ सौ विपत्तियों में घिर कर भी, लोगों का कल्याण किया ।।
वो सबका प्यारा था क्योंकि, सबकी सेवा में तत्पर था ।
सब उसे पूजते थे कि वो, सारे देवों से बढ़कर था ।।
वरना ये मानव -जाति- सकल, केवल अपना हित करती है।
यह बिना स्वार्थ के कहाँ किसी को यूँ ही पूजा करती है ।।
है निःसंदेह शाश्वत सत्य, वह मनुज नहीं अवतार ही था ।
हम जिसे आज भी ध्याते हैं साक्षात विष्णु- साकार ही था ।।
कुछ कामातुर कवियों ने उन्हें, एक रास रचैया कह डाला।
निर्लज्जों ने उन्हें चीर- चोर, और कुटिल कन्हैया कह डाला ।।
यह पुनर्विचारणीय है ! हम किस रूप में जानें कान्हा को।
भोगी,या विलासी, धर्मबिन्दु, या योगी मानें कान्हा को ।।
जिसकी कुछ बातें गीता में जीवन के पथ की प्रदर्शक हैं ।
उनके जीवन पर टिप्पणी में, कुछ कहना क्या आवश्यक है ?
हम खुद थोड़ा सा विचार करें, कुछ मत उनके स्वीकार करें ।
तो विश्व-गुरु होवे भारत, यदि हम कुछ पुनर्विचार करें ।।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
आशुतोष त्रिपाठी ।।

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