तुम केवल एक शरीर नहीं माँ !
तुम पूरी मानवता हो ।
जीवन यदि सुंदर उपवन है तो
तुम इसकी सुंदरता हो! तुम केवल एक शरीर नहीं माँ तुम पूरी मानवता हो !!
जीवन के कोमल अंकुर को तुमने एक नया वितान दिया ।
और अपने रक्त से सींच सींच कर इसको धवल विहान दिया ।।
वो भी बिल्कुल अनपेक्षित!,तुम साक्षात धैर्य, वत्सलता हो !!
माँ तुम पूरी मानवता हो !
होकर तुम स्वयं तिरस्कृत भी, सेवा और स्नेह का सागर हो.
तुम स्वयं रिक्त सी होकर भी , अप्रतिम ममता की गागर हो।
जिससे सदैव बस प्रेम बहे माँ तुम ऐसी निर्झरिणी हो ।
इस कष्ट भरे जीवन नद की माँ केवल तुम ही तरणी हो !!
है किंतु बहोत दुर्भाग्यपूर्ण हे माँ तुम आज तिरस्कृत हो।
जिनको तुमने जीवन बाँटा उनसे इस भाँति पुरस्कृत हो ।
वो अपने पत्नी बच्चों को ही बस कुटुम्ब हैं मान रहे ।
और तुम सनाथ होकर, अनाथ आश्रम जाने को शापित हो ।।
फिर भी तुम कुपित नहीं होती? साक्षात क्षमा की देवी सी! माँ तुम खुद बोलो तुम क्या हो ??!!
माँ तुम बस एक शरीर नहीं हो !! तुम पूरी मानवता हो !!
हाँ तुम पूरी मानवता हो !!