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चल अकेला…..

अनवरत चलता चला जा पंथ है, जिस ओर तेरा।
पाँव अब रुकने न पाएँ, रात हो या हो सवेरा।
मार्ग में बिल्कुल अकेला भी कभी, शायद रहे तू।
हो कि छाया भी तेरी, जो छोड़ जाए साथ तेरा ।
किन्तु रुकना मत पथिक, चाहे पड़ें सौ कष्ट सहने।
और हो कितना भी दुस्तर,या कि दुर्गम मार्ग तेरा।
अनगिनत आतप हों या, हिमपात हो राहों में तेरी।
किन्तु चलना ही पड़ेगा, बज गई जब युद्ध-भेरी ।
दीनता का है नहीं क्षण, ये अमित पुरुषार्थ का है।
चाँद हो पूनम का, या फिर, हो अमावस निशि अंधेरी।
बन स्वयं आलोक अपना, मार्ग आलोकित बना ले।
अब उठा भुजदंड अपने, ये ज़माने को बता दे ।
जिनमें है साहस भरा, वो काल से भी क्यों डरेगा?
बिन किये वो लक्ष्य-प्राप्ति न थकेगा न रुकेगा।
बिन किये वो लक्ष्य-प्राप्ति न थकेगा न रुकेगा ।।

आशुतोष त्रिपाठी

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