Categories
Poetry

मैं पिता हूँ ..

मैं पिता हूँ !!

शेष जीवन की मेरे अब आ रही है सांध्य वेला।
बोझ काँधों पर उठाए चल रहा था मैं अकेला ।।
झुर्रियां कुछ और गहरी हो रहीं चेहरे की मेरे ।
ख़ुद लगाए पौधों को अब पेड़ बनते देखता हूँ ।।
मैं पिता हूँ…
स्नेह पर मेरे हमेशा फ़िक्र ही हावी रही है। ।
बस ज़रूरत ही निभी है, ख़्वाहिशें बाकी रहीं है।
एक घर को जोड़ने में, मैं कभी टूटा या बिखरा ।
किन्तु सागर बन, ग़मो को शांत हो पीता रहा हूँ।
मैं पिता हूँ…..

अनगिनत कठिनाईयों से रोज़ मैं दम भर लड़ा हूँ।
छत्र बनकर आतपों से और शीतों से लड़ा हूँ ।।
मैं नहीं कहता कि है उपकार कुछ तुम पर भी मेरा।
किन्तु तुमको ही समर्पित – सा रहा जीवन है मेरा।
आज शायद कुछ उम्मीदों से मैं तुमको देखता हूँ!!
मैं पिता हूँ…..
तुम बुलंदी पर रहो कोशिश हमेशा की है मैंने।
ईंट बनकर नींव की तुमको दुआएँ दी हैं मैंने ।।
और कुछ ख्वाहिश नहीं आदर्श मेरे तुम समझना !!
तुम हो आनेवाले पल ! और मैं वो हूँ जो जा चुका हूँ ।।
मैं पिता हूँ……..

पूज्य पिताजी को समर्पित 🙏
आशुतोष त्रिपाठी !!