वक़्त को उस से कुछ गिला तो था,
वरना उस रोज़ वो मिला तो था ..!
लोग कहते हैं अब वो तन्हा है ..?
साथ मे उसके काफिला तो था ..!
शायद इसको ही जीस्त कहते हैं,
एक रोटी का मामला तो था ..!
नफ़रतें प्यार में बदलीं न कभी ..
अच्छा खासा घुला मिला तो था ..!
बिन पिये रिन्द का यूँ लौट आना ..?
आज मैखाना भी खुला तो था …!
“आशुतोष त्रिपाठी”